| हाथी हाथी की सूँड, उसकी नाक और हाथ दोनों का काम करती है। साधारण व्यक्ति समझते हैं कि हाथी सूँड़ से पानी पीता है। यह विचार भ्रामक है। वह सूँड़ में पानी भरता है, और फिर उसे मुँह में डालता है। शत्रु के निकट आने पर उसकी पहली चिंता अपनी सूँड़ की रक्षा करने की होती है। वह उसे लपेटकर मुँह के अन्दर डाल लेता है। गजदंत हाथी के शरीर का सबसे दर्शनीय और कीमती भाग है। प्राय: हाथी का वध केवल गजदंत के लिए होता है, जिनसे नाना प्रकार की दर्शनीय वस्तुएँ तराश कर बनाई जाती हैं। हाथी पेटू ही नहीं होता, वरन चाटू भी होता है। उसे सुस्वादु भोजन भी बहुत प्रिय है। उसे भली-भांति मालूम रहता है कि किस मौसम में, किस भाग में, कौन कन्द, मूल, फल अधिक रसीले होते हैं। इनका रसास्वादन करने के लिए वह प्रति वर्ष स्थान-परिवर्तन करता है और लम्बी यात्राएँ भी करता है। हाथी समाजप्रिय पशु है। वे हमेशा झुंड में रहते हैं। झुंड के सब सदस्य नेता की आज्ञा का पालन करते हैं। अपराधी हाथी को दल से निकाल दिया जाता है। उसे एकाकी जीवन बिताना पड़ता है। वह भी एकल बंदर और सुअर की भांति दुष्ट स्वभाव का हो जाता है। हाथियों के सम्पर्क में आने वाले मनुष्य इन पशुओं की बुद्धिमानी तथा दयालु स्वभाव की सराहना करते हैं। अच्छे महावत और उसके हाथी में घनिष्ठ मित्रता होती है। अंकुश तो केवल महावत के विशेष अधिकार का प्रतीक मात्र होता है। १ जनवरी २००४ |
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Monday, November 21, 2011
Saturday, November 19, 2011
KOYAL
बच्चों ,कोयल और कौआ दोनों का रंग काला होता है .लेकिन दोनों की आवाज़ में बहुत अंतर होता है . कौए की आवाज़ बहुत कर्कश (कड़वी ) होती है तो कोयल की आवाज़ मिसरी की तरह मीठी होती है . इस बात से हमें यह पता चलता है कि किसी व्यक्ति के कपड़े या उसका बाहरी रंग-रूप देखकर उसे अच्छा या बुरा नहीं समझना चाहिए . बल्कि हमें उसके गुणों पर ध्यान देना चाहिए.
BHASHA
अपनी बात जब हम दूसरों तक पहुँचाना चाहते हैं तब हमें किसी न किसी भाषा की ज़रूरत होती है. हम अपनी बात लिखकर ,बोलकर या संकेतों के माध्यम से भी कह सकते हैं. संकेतों की भाषा का इस्तेमाल नाटकों में ही अधिक होता है. व्याकरण में हम उसी भाषा पर चर्चा करते हैं जिसे अक्षरों के माध्यम से लिखा जा सके और ध्वनि या आवाज़ के माध्यम से बोला सुना जा सके.
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